आँखों के पहरे
एक शख़्स पाबंद कर गया मुझे लम्हों की क़ैद में,
मेरी आँखों में अपनी यादों के पहरे बिठा गया,
निशाना अचूक होता है,
सादगी भरी निगाहों का !!
हाल क्या कहूं लग गई है नजर तुम्हारी
तुम्हारी थी इसलिए अब तक नहीं उतारी।
आँखें मूंद कर जो दिखते है…
खुली आँखें उन्हीं को ढूँढती हैं..
तुम्हारी आँखें पढकर
हमने गजलें सीखी है
तुम्हारी मुहब्बत से
हमने शायरी सीखी है
जिक्र तुम्हारा करते भी नहीं
फिर भी लोग कहतें हैं
लाजवाब है वो शख्स
जिससे तुमने मोहब्बत सीखी है ….
आंखे तो कह रही है तुम्हें हमसे प्यार है,
चेहरा बता रहा है कि कश्मकश में हो..